Chaand Ke Sath Kai Dard Purane Nikale Lyrics in Hindi
चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले
फ़स्ल-ए-गुल आई फिर इक बार असिरान-ए-वफ़ा
अपने ही ख़ून के दरिया में नहाने निकले
दिल ने एक ईटं से तामीर किया ताज-महल
तूने इक बात कही लाख़ फ़साने निकले
दश्त-ए-तन्हाई-ए-हिज्रा में खड़ा सोचता हूँ
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले
इसी ग़ज़ल के कुछ और अश'आर:
हिज्र कि चोट अजब संग-शिकन होती है
दिल की बेफ़ैज़ ज़मीनों से ख़ज़ाने निकले
उम्र गुज़री है शब-ए-तार में आँखें मलते
किस उफ़क़ से मेरा ख़ुर्शीद ना जाने निकले
कू-ए-क़ातिल में चले जैसे शहीदों का जुलूस
ख़्वाब यूँ भीगती आँखों को सजाने निकले
मैंने 'अमजद' उसे बेवास्ता देखा ही नहीं
वो तो ख़ुश्बू में भी आहट के बहाने निकले
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