Ghar Se Ham Nikale The Maszid Ki taraf Jaane Ko || घर से हम निकले थे मस्जिद की तरफ़ जाने को

Ghar Se Ham Nikale The Maszid Ki taraf Jaane Ko ||
घर से हम निकले थे मस्जिद की तरफ़ जाने को 



घर से हम निकले थे मस्जिद की तरफ़ जाने को ,
रिन्द बहका के हमे ले गये मैखाने को ,

ये ज़बां चलती है, नासेह की छुरी चलती है,
जेबा करने मुझे आये है के समझाने को ,

आज कुछ और भी पी लूं के सुना है मैनें,
आते है हज़रत-ऐ-वाइज़ मेरे समझाने को,

हट गई आरिज़-ऐ-रोशन से तुम्हारे जो नक़ाब,
रात भर शम्मा से नफरत रही दिवाने को ।।


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