Zulmat-kade mein mere shab-e-gham ka josh hai || ज़ुल्मत-कदे में मेरे, शब-ए-ग़म का जोश है

Zulmat-kade Me Mere..!!



ज़ुल्मत-कदे में मेरे, शब-ए-ग़म का जोश है
इक शम`अ है दलील-ए-सहर, सो ख़मोश है

दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
इक शम`अ रह गई है, सो वह भी ख़मोश है

आते हैं ग़ैब से, ये मज़ामीं ख़याल में
ग़ालिब, सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है




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